April 20, 2024

Scientific Knowledge

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विद्युत रसायन/Electro Chemistry Class 12th

विद्युत रसायन

 

विद्युत रसायन ?: रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत रासायनिक उर्जा तथा विद्युत उर्जा के परस्पर रूपान्तरण तथा उनके मध्य संबंध का अध्ययन किया जाता है, विद्युत रसायन कहलाती है।

विद्युत अपघट्य : ऐसे लवण या यौगिक जिनको जल में मिलाने पर वे आयनो में टूट जाते है विद्युत अपघट्य कहते है।

विद्युत-अपघटनी या आयनिक चालकत्व :

किसी चालक में विद्युत धारा के प्रवाह की सुगमता को विद्युत चालकता कहते है तथा किसी विद्युत अपघट्य विलयन से विद्युत धारा के प्रवाह की सुगमता को विद्युत-अपघटनी चालकता कहते है।

विघुत-अपघटनी चालकता से संबंधित कुछ मूल अवधारणाएं :

  • विद्युत चालकता: किसी चालक से विद्युत प्रवाहित करने की सहजता को उस चालक की विद्युत चालकता कहते है। इसे चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम के बराबर माना जाता है, तथा इसे C से निरूपित किया जाता है।

या

वैद्युत प्रतिरोध (R) के व्युत्क्रम को विद्युत चालकता कहते है।

अर्थात्           C = 1 / R

जहां  R–  चालक का वैद्युत प्रतिरोध है।
                मात्रक – ohm-1  ( ओम -1 )

 

  • विशिष्ट प्रतिरोध:-

    किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई,   के समानुपाती तथा अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल,  A  के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

अर्थात्                 R ∝ l         तथा      R ∝ 1 / A

                        R ∝ l / A

                                               R = የ x  l / A 

                                              የ = R A / l

जहां  የ  चालक का विशिष्ट प्रतिरोध है।

 

  • विशिष्ट चालकता या चालकता :

    विशिष्ट प्रतिरोध (የ) के व्युत्क्रम को विशिष्ट चालकता कहते है। इसे  κ (कप्पा) से निरूपित करते है।

κ = 1 / 

               κ = l / R A      ( ∵  የ = R A / l )

 

मात्रक–    ( ओम-1 सेमी-1 )  या  ( साइमन सेमी-1 )

 

  • मोलर चालकता (Λm) :  किसी विलयन के एक निश्चित आयतन में उपस्थित विद्युत अपघट्य के 1 मोल द्वारा उपलब्ध कराए गए आयनो की चालकता को मोलर चालकता m) कहते है।

 

विशिष्ट चालकता तथा मोलर चालकता में संबंध-

 

Λm   =   κ * 1000 / C

NOTE-  C के स्थान पर  M  भी लिख सकते है
यहां  C  या  M  विलयन की मोलरता है

  • तुल्यांकी चालकता (Λeq ) : किसी विलयन के निश्चित आयतन में उपस्थित विद्युत अपघट्य के एक ग्राम तुल्यांक द्वारा उपलब्ध कराए गए आयनो की चालकता तुल्यांकी चालकता eq कहलाती है।

या

 
किसी विद्युत-अपघट्य के एक तुल्यांकी भार के चालकत्व को इसकी तुल्यांकी चालकता eq कहते है।

 

तुल्यांकी चालकता तथा विशिष्ट चालकता में संबंध-

 Λeq  =  κ * 1000 / N

 

यहां  N  विलयन की नोर्मलता है।

विद्युत रासायनिक सेल

विद्युत रासायनिक सेल वह युक्ति है, जिसके द्वारा रासायनिक उर्जा और विद्युत उर्जा का एक-दूसरे में अंतः-परिवर्तन होता है।
अर्थात्           रासायनिक उर्जा  ⇄  विद्युत उर्जा

उर्जा परिवर्तन के आधार पर विद्युत रासायनिक सेल दो प्रकार के होते है-

  • विद्युत अपघटनी सेल
  • गैल्वेनिक सेल या वोल्टीय सेल

 

  • विद्युत अपघटनी सेल:- इस सेल में विद्युत उर्जा के द्वारा रासायनिक उर्जा उत्पन्न की जाती है। इनमें बाह्य विद्युत धारा की सहायता से असतत् रेडॉक्स अभिक्रिया सम्पन्न कराई जाती है।

जैसे  – लेड-अम्ल बैटरी (आवेशन के समय)

  • गैल्वेनिक सेल या वोल्टीय सेल:- इस सेल में रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इनमें सतत् रेडाॅक्स अभिक्रियाओं के कारण विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

जैसे- डेनियल सेल, लेड अम्ल बैटरी (निरावेशन के समय)

 

 

उत्क्रमणीयता के आधार पर सेल के प्रकार-

  • प्राथमिक सेल
  • द्वितीयक सेल

प्राथमिक सेल:- प्राथमिक सेलो में इलैक्ट्रोड अभिक्रिया केवल एक बार होती है, और एक बार प्रयोग के बाद इसके सेल मृत हो जाते है, दोबारा इन्हे प्रयोग में नही लाया जा सकता है अर्थात् सेल को पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता।

जैसे – शुष्क अथवा लेक्लांशे सेल, मर्करी सेल आदि।

  • द्वितीयक सेल:- इन सेलो में इलैक्ट्रोड अभिक्रिया किसी बाह्य विद्युत ऊर्जा स्रोत द्वारा उत्क्रमित हो सकती है अर्थात् इन सेलो को विद्युत धारा प्रवाहित करके पुनः आवेशित किया जा सकता है यानी इन्हे एक से अधिक बार प्रयोग किया जा सकता है। इनमें विद्युत ऊर्जा को संचित किया जा सकता है। अतः इन सेलो को संचायी सेल अथवा संग्रह सेल भी कहा जाता है।

जैसे- सीसा (लेड), संचायक सेल, निकेल-कैडमियम सेल आदि।

 

गैल्वेनिक सेल

गैल्वेनिक सेल एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है। यह विद्युत रसायन विज्ञान का आम अनुप्रयोग है जिसे बैटरी भी कहा जाता है। इसका आविष्कार लुइगी गैलवानी और एलेसेंड्रो वोल्टा द्वारा किया गया था जिसमें वोल्टेज बनाने की क्षमता है।

इस सेल में एक कंटेनर होता है जिसमें सांद्र कॉपर सल्फेट (CuSO4) का तरल इसके अंदर रखा जाता है और कॉपर रॉड को तरल CuSO4  के अंदर डाला जाता है जो कि कैथोड की तरह काम करता है। इस कंटेनर के अंदर एक छिद्रयुक्त कंटेनर रखा जाता है|

जिसमें सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) भर दिया जाता है जिसमें जस्ता (जिंक) छड़ी डाली जाती है जो कि एनोड की तरह कार्य करती है। इस प्रकार जब एक तार तांबे की छड़ी और जस्ता (जिंक) छड़ी के माध्यम से जुड़ा होता है तो विद्युत प्रवाह शुरू होता है।

Structure:

 

 

 

इस सेल में दो पात्र होते है , एक पात्र में Zn की छड़ लेकर उसमे ZnSO4 का विलयन भर लेते है। दूसरे पात्र में Cu की छड़ लेकर उसमे CuSOका विलयन भर लेते है।  दोनों अर्द्ध सैलों के मध्य उत्पन्न विभवांतर को ज्ञात करने के लिए दोनों छड़ को विभवमापी से जोड़ देते है।

दोनों अर्ध सेलों का सम्बन्ध लवण सेतु से कर दिया जाता है। लवण सेतु U आकार की नली है इसमें KCl या अमोनिया क्लोराइड तथा ऐगर ऐगर जैली का पेस्ट भरा होता है।

 

कार्यप्रणाली :

  1. Zn की तुलना में Cu अधिक सक्रीय होता है अतः Zn (ज़िंक) की छड़ से Zn2+आयन विलयन में जाते है तथा इलेक्ट्रॉन Zn की छड़ पर शेष रह जाते है।

Zn   =      Zn2+   + 2e

  1. Zn की छड़ का ऑक्सीकरण होता है अतः इसे एनोड कहते है।
  2. इलेक्ट्रॉन Zn (जिंक ) की छड़ पर शेष रहने के कारण इसे ऋण पोल (pole) कहते हैं।
  3. Zn की छड़ से इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ से होते हुए Cu की छड़ में जाते है , Cu की छड़ को धन पोल कहते है।
  4. Cu की छड़ पर विलयन में उपस्थितCu2+ आयन Cu में उपचयित हो जाते है। Cu की छड़ पर अपचयन होने के कारण इसे कैथोड कहते है।

Cu2+ + 2e   =  Cu

  1. विद्युत धारा इलेक्ट्रॉन बहने की दिशा के विपरीत दिशा में जाता है अर्थात विधुत धारा Cu की छड़ से Zn की छड़ की ओर प्रवाहित होती है।
  2. सेल अभिक्रिया निम्न है।
बायां इलेक्ट्रोड: Zn(s) → Zn2+    + 2e– ऑक्सीकरण
दायां इलेक्ट्रोड: Cu2+   + 2e    → Cu(s) अपचयन

Zn(s)           +         Cu2+        →Zn2+         +Cu (s)

 

  1. दोनों अर्द्ध सेलों केविभवके अंतर को सेल का विधुत वाहक बल कहते है इसे Ecell से व्यक्त करते है।  डेनियल सैल का मानक विधुत वाहक बल + 1.10 वोल्ट

E0cell   =  E0right   –  E0left

E0cell   =  E0cathode   –  E0anode

E0cell   =  E0Cu2+/Cu   –  E0Zn2+/Zn

E0cell   =  +0.34   –  (- 0.76)

E0cell   =  +0.34 + 0.76

E0cell   = 1.1 volt

  1. डेनियल सैल का सैल आरेख निम्न है।

Zn(S)/ ZnSO4(aq)(1M) // CuSO4(aq)(1M) / Cu

एनोड                                          कैथोड

  1. यदि सैल को बाह्य विधुत स्रोत से जोड़ दे तो निम्न तीन परिस्थितियाँ सम्बन्ध है।

(i) यदि Eबाह्य  < 1.1 वॉल्ट   है तो इलेक्ट्रॉन ऐनोड से कैथोड की ओर जाते है तथा सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।

Zn(s) → Zn2+ + 2e

(ii) यदि  Eबाह्य  = 1.1 वॉल्ट   है तो सेल में कोई अभिक्रिया नहीं होगी।

(iii) यदि Eबाह्य  > 1.1 वॉल्ट   है तो इलेक्ट्रॉन Cu की छड़ से Zn की छड़ की ओर जाते है तथा सेल अभिक्रिया विपरीत दिशा में होती है।

Zn2+ + Cu  →  Zn(s)  +   Cu2+

 

सेल आरेख:  गैल्वैनी सेल को छोटे रूप में व्यक्त करना सेल आरेख कहलाता हैं |

सेल आरेख बनाने के मुख्य बिंदु निम्न हैं।

(1) सैल आरेख में ऐनोड बायीं ओर तथा कैथोड को दायीं ओर लिखा जाता हैं।

(2) ऐनोड को लिखते समय धातु को पहले तथा लवण के विलयन को बाद में लिखते है , दोनों के मध्य एक खड़ी रेखा खींचते है , जैसे डेनियल सैल के लिए

उदाहरण : Zn(S) / ZnSO4(aq)

(3)  कैथोड को लिखते समय विलयन को पहले तथा धातु की छड़ को बाद में लिखते है दोनों के मध्य एक खड़ी रेखा खींचते है।

उदाहरण : CuSO4(aq) / Cu(s)

(4) कैथोड व ऐनोड के मध्य दो समान्तर रेखायें लवण सेतु को व्यक्त करती हैं।

(5) सैल आरेख बनाते समय धातु तथा विलयन की भौतिक अवस्था को छोटे कोष्ठक में बंद करके लिखना चाहिए।

(6) सैल आरेख बनाते समय विलयन की सान्द्रता को छोटे कोष्ठक में बंद करके लिखना चाहिए।

जैसे : डेनियल सैल का सेल आरेख निम्न है।

Zn(S) / ZnSO4(aq)(1M) // CuSO4(aq)(1M) / Cu(s)

 

इलेक्ट्रोड विभव

जब कोई धातु की छड (इलेक्ट्रोड) को इसके आयनों के विलयन में डाला जाता है तो धातु पर विलयन की तुलना में धनात्मक या ऋणात्मक आवेश आ जाता है , जिसके कारण धातु और विलयन के मध्य एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है , धातु और विलयन के मध्य उत्पन्न इस विभवान्तर को ही इलेक्ट्रोड विभव कहते है।

इलेक्ट्रोड विभव धातु की प्रकृति विलयन में उपस्थित उस धातु के आयनों की सांद्रता तथा ताप पर निर्भर करता है।

ऑक्सीकरण विभव

जब कोई इलेक्ट्रोड विलयन में इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृति रखता है तो इलेक्ट्रोड की विलयन में इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति का मापन ही ऑक्सीकरण विभव कहलाती है।

अपचयन विभव

जब कोई इलेक्ट्रोड विलयन से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रकृति रखता है तो इलेक्ट्रोड की विलयन से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति का मापन अपचयन विभव कहलाता है।

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड(SHE) में एक प्लेटिनम (pt) की छड़ होती है जिसके एक सिरे पर Pt की पन्नी लगी होती है इस पर (Pt) प्लेटिनम ब्लैक का लेप चढ़ा होता है इसे 1M HCl के विलयन में डुबो देते है।  इस पर (1 atm ) एक वायुमंडलीय दाब तथा 25 डिग्री सेंटीग्रेट ताप पर हाइड्रोजन गैस प्रवाहित करते हैं।

हाइड्रोजन का मानक ऑक्सीकरण विभव तथा मानक अपचयन विभव के मान शून्य होते है।

½ H2(g) = H+  + e       E 1/2H2/H+ = 0

H+  + e       = ½ H2      E H+/(1/2H2)

(SHE) का सैल आरेख

ऐनोड

Pt(s)/H2(g)(1 atm)/HCl(1M)

कैथोड

(1M) HCl/H2(g)(1atm)/Pt(s)

 

धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करना:

जिस धातु का धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करना होता है उस धातु की छड़ को 1M धातु आयन के विलयन में 25 डिग्री सेंटीग्रेट ताप पर डुबोकर रख देते है , उसे लवण सेतु की सहायता से मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड से जोड़ देते है तथा विभव मापी की सहायता से सैल का मानक विधुत वाहक बल ज्ञात कर लेते हैं।

(1) जब अज्ञात इलेक्ट्रोड ऐनोड के रूप में लिया जाए इसमें अज्ञात इलेक्ट्रोड को मानक परिस्थितियों में SHE से जोड़ देते हैं तथा E0 सेल का मान विभव मापी की सहायता से ज्ञात कर लेते है।

उदाहरण : Zn(s) /ZnSO4(1M) // HCl (1M) /H2(g) (1atm) /Pt

यदि E0cell = +0.76 Volt हैं।

तो अज्ञात इलेक्ट्रोड मानक अपचयन विभव निम्न प्रकार से ज्ञात करते है।

E0cell = E0H+/(1/2H2)   –  E0Zn2+/Zn

+0.76  = 0  – E0Zn2+/Zn

E0Zn2+/Zn  = – 0.76 v

(2) जब अज्ञात इलेक्ट्रोड कैथोड के रूप हो अज्ञात इलेक्ट्रोड को मानक परिस्थितियों में SHE से जोड़ देते है तथा E0cell  का मान प्रयोगों की सहायता से ज्ञात कर लेते हैं।

उदाहरण : Pt(s) / H2(g)(1atm) /HCl(1M) // CuSO4 (1M) /Cu(s)

प्रयोगों की सहायता से E0cell  का मान +0.34 वॉल्ट है तो अज्ञात इलेक्ट्रोड का मानक अपचयन विभव निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं।

E0cell = E0Cu2+/Cu  –  E0H+/(1/2H2)

+0.34  =  = E0Cu2+/Cu  –  0

E0Cu2+/Cu   = +0.34

 

फैराडे के विद्युत अपघटन के नियम- 

फैराडे के विद्युत अपघटन से संबंधित दो नियम है।

  • प्रथम नियम:- विद्युत अपघटन के दौरान किसी इलैक्ट्रोड पर मुक्त हुई पदार्थ की मात्रा, प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की मात्रा के समानुपाती होती है। यह फैराडे का प्रथम नियम कहलाता है।

अतः       W ∝ Q

W = Z Q        Z – विद्युत रासायनिक तुल्यांक 

चूंकि      Q = I x T 

W =  Z I T

यहां        I – धारा एम्पियर में
T –
समय सेकण्ड में है।

 

 द्वितीय नियम:-

 जब विद्युत धारा की समान मात्रा विभिन्न विद्युत-अपघट्यो में प्रवाहित की जाती है, तो इलैक्ट्रोड पर मुक्त होने वाले पदार्थो की मात्राएं, उनके तुल्यांकी द्रव्यमानो या विद्युत रासायनिक तुल्यांक के समानुपाती होती है। यह फैराडे का द्वितीय नियम कहलाता है।

W1 ∝ E1

W2 ∝ E2   

W1 / W2   =  E1 /  E2

   यहां        W   पहले विद्युत-अपघट्य द्वारा इलैक्ट्रोड पर मुक्त धातुओ की मात्रा

                E1 –   उस धातु का तुल्यांकी भार 

               W2 –   दूसरे विद्युत-अपघट्य द्वारा इलैक्ट्रोड पर मुक्त धातुओ की मात्रा 

               E2 –    उस धातु का तुल्यांकी भार

इलैक्ट्रोड – 

जब किसी धातु की प्लेट (छड़) को उसी धातु के लवण के जलीय विलयन में रखा जाता है तो धातु की प्लेट पर आवेश उत्पन्न हो जाता है तथा विलयन पर समान मात्रा में विपरीत आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार की धातु प्लेट या छड़ इलेक्ट्रोड कहलाती है।

 

विद्युत रासायनिक श्रेणी –

विभिन्न तत्वो को उनके बढ़ते हुए अपचयन इलैक्ट्रोड विभवो के क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है। उसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है।

Li, K, Ba, Ca, Na, Mg, Al, Zn, Cr, Fe, Cd, Co, Ni, Sn, Pd, H, Cu, Ag, Hg, Br, Au.

इन दिए तत्वो को बढ़ते हुए इलैक्ट्रोड विभव की श्रेणी में रखा गया है।

 

विद्युत रासायनिक श्रेणी के अनुप्रयोग-

  • विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर (पहले) से नीचे (बाद) की ओर जाने पर धातुओ की रासायनिक सक्रियता तथा धन-विद्युती लक्षण क्रमशः घटते है।
  • विद्युत रासायनिक श्रेणी में उच्च विद्युत धनात्मक तत्व (आगे वाले तत्व), निम्न विद्युत धनात्मक तत्वो  (बाद वाले तत्व)  को उनके लवणो के विलयन से विस्थापित कर देते है।

जैसे-  Zn, CuSO4 (कॉपर सल्फेट)  के विलयन से  Cu  को विस्थापित करा देता है।

 

  • जिन धातुओ के मानक अपचयन विभव का मान हाइड्रोजन के सापेक्ष ऋणात्मक होता है, वे अम्लो के विलयन से हाइड्रोजन विस्थापित कर देते है।
  • विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर  (पहले)  से नीचे  (बाद)  की ओर जाने पर धातुओं की अपचायक क्षमता घटती है, क्योकि मानक अपचयन विभव के मान बढ़ते है।
  • विद्युत रासायनिक श्रेणी में आयरन के बाद स्थित धातुओ के आॅक्साइडो का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन हो जाता है।
  • जिन पदार्थो के रेडाॅक्स युग्मो के मानक अपचयन विभव अधिक धनात्मक होते है, वे प्रबल आॅक्सीकारक होते है, तथा जिन पदार्थो के मानक अपचयन विभव का मान अधिक ऋणात्मक होता है, वे प्रबल अपचायक होते है।
  • इस श्रेणी में  Hg  तथा इससे बाद की धातुओ के आॅक्साइड गर्म करने पर स्वतः धातु में अपघटित हो जाते है।

 

विद्युत रासायनिक सेल क्या है:

वे सेल जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते है उन्हें विद्युत रासायनिक सेल कहते हैं।

विद्युत अपघटनी सेल क्या है:

वे सेल जो विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते है उन्हें विद्युत अपघटनी सेल कहते हैं।

विद्युत रासायनिक सेल तथा विद्युत अपघटनी सेल में अंतर:

 

विद्युत रासायनिक सेल विद्युत अपघटनी सेल
 1. ये रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं।  ये विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।
 2. इसमें ऐनोड ऋणावेशित तथा कैथोड धनावेशित होता हैं।  इसमें ऐनोड धनावेशित तथा कैथोड ऋणावेशित होता हैं।
 3. इसमें लवण सेतु काम में आता हैं। इसमें लवण सेतु काम में नहीं लेते हैं।
4. इसमें क्रिया स्वतः होती हैं। इसमें क्रिया स्वतः नहीं होती हैं।
5. इसमें दो अलग अलग पात्र लेते हैं। इसमें एक ही पात्र काम में लिया जाता है।

 

बैटरियां क्या है –

जब दो या दो से अधिक विद्युत रासायनिक सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है तो इसे बैट्री कहते है, यह रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है।
जब विद्युत रासायनिक सेल को बैट्री बनाने के लिए श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है तो इससे बहुत अधिक धारा प्राप्त की जा सकती है इसलिए हम सेल और बैटरी में यह अंतर बता सकते है कि सेल द्वारा प्राप्त विद्युत धारा निम्न या कम होती है जबकि बैट्री द्वारा प्राप्त विद्युत धारा का मान उच्च होता है।

 

अच्छी बैट्री के गुण:

बैट्री में कुछ गुण होते है जिसके आधार पर उसे अच्छी बैट्री कहा जा सकता है जो निम्न है:

  • बैटरी का आकार छोटा होना चाहिए तथा इसका मूल्य भी कम होना आवश्यक है, अर्थात बैट्री का आकार और कीमत जितनी कम होगी वह उतनी ही अच्छी बैटरी मानी जाती है।
  • एक अच्छी बैट्री से अधिक समय तक उच्च ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है, किसी बैट्री का जीवनकाल जितना अधिक होता है वह उतनी ही अच्छी बैटरी मानी जाती है।
  • बैट्री वजन में हल्की होनी चाहिए।
  • वह स्थिर वोल्टता की धारा देनी चाहिए अर्थात उस बैट्री द्वारा उत्पन्न धारा में वोल्टता समय के साथ स्थिर रहनी चाहिए या वोल्टता नियत रहनी चाहिए ताकि इससे चलने वाले उपकरण वोल्टता परिवर्तन के कारण खराब न हो।

बैटरी कैसे कार्य करती है –

बैट्री एक ऐसा उपकरण है जिसमें बहुत सारे वोल्टिक सेल श्रेणीक्रम में जुड़े रहते है , प्रत्येक वोल्टिक सेल दो अर्द्ध सेल होते है जिन्हें इलेक्ट्रोड कहते है , विद्युत अपघट्य में ऋण आयन और धन आयन उपस्थित रहते है जो विपरीत इलेक्ट्रोड की तरफ गति करते है और परिणामस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

यहाँ सेल में रेडोक्स अभिक्रिया होती है अर्थात एक इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण होता है और दूसरे इलेक्ट्रोड पर अपचयन की अभिक्रिया होती है अर्थात सेल में रेडोक्स अभिक्रिया के फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

बैटरी के प्रकार – Types of Batteries:

मुख्य रूप से बैटरीयाँ दो प्रकार की होती है:

  1. प्राथमिक बैटरीयां
  2. द्वितीयक बैटरीयाँ
  3. प्राथमिक बैटरीयां: वे बैट्री जिनमें रासायनिक अभिक्रिया केवल एक दिशा में होती है अर्थात इस प्रकार की बैट्री में अभिक्रिया एक तरफ चलकर पूर्ण हो जाती है और विद्युत उत्पादन बंद हो जाता है , इस प्रकार की बैटरी में अभिक्रिया को विद्युत धारा प्रवाहित करके विपरीत दिशा में नहीं करवाया जा सकता है अर्थात इन बैट्रीयों को चार्ज नहीं किया जा सकता है , यदि इन बैट्री में रासायनिक अभिक्रिया पूर्ण हो जाती है तो येबेकार हो जाते है , इन्हें पुन: चार्ज नहीं किया जा सकता है।

उदाहरण : शुष्क सेल , मर्करी सेल।

  1. द्वितीयक बैटरीयाँ: वे बैटरीयाँ जिनमे रासायनिक अभिक्रिया दोनों दिशाओं में चलती है अर्थात इन बैट्रीयों को पुन: चार्ज करके काम में लिया जा सकता है , इन बैटरियों को बार बार चार्ज करके काम में लिया जाता है अर्थात ये बेकार नहीं होता है , डिस्चार्ज होने पर पुन: इन्हें चार्ज करके काम में लिया जाता है।

पहले इन बैटरीयों में अभिकारक उत्पाद में परिवर्तित हो जाते है और धीरे धीरे डिस्चार्ज हो जाते है फिर इन बैटरीयों में विद्युत धारा प्रवाहित करके उत्पाद को अभिकारक में बदला जाता है और पुन: चार्ज कर दिया जाता है।

अर्थात इस प्रकार की बैट्री को बार बार चार्ज करके उपयोग में लाया जाता है , इसके कारण ये अधिक उपयोग होती है।

प्राथमिक बैट्री की तुलना में ये कुछ अधिक कीमत वाली होती है।

उदाहरण : लैड स्टोरेज सेल, निकल कैडमियम स्टोरेज सेल आदि।

 

शुष्क सेल :

इस सेल में Zn का एक पात्र होता है , जो ऐनोड की तरह काम करता है इसके मध्य में एक ग्रेफाइट (कार्बन) की छड़ लगी होती है जिसके ऊपर पीतल की एक टोपी लगी होती है।  यह कैथोड की तरह कार्य करती है। कार्बन की छड़ के चारों ओर MnO2 व कार्बन का चूर्ण भरा होता है।

ऐनोड व कैथोड के मध्य में ZnCl2 व NH4Cl का पेस्ट भरा होता है। जब सेल से विधुत प्राप्त करते है तो निम्न क्रियाऐं होती हैं।

ऐनोड पर क्रिया  Zn → Zn2+  + 2e

कैथोड पर क्रिया  2MnO2 + 2NH4+  + 2e  → 2MnO(OH) + 2NH3

इस क्रिया में बनी अमोनिया गैस Zn2+ आयन से क्रिया कर लेती है तथा [Zn(NH3)4]2+ आयन बना लेती हैं।

Note: अमोनिया क्लोराइड अम्लीय प्रवृति का होने के कारण यह Zn के पात्र से क्रिया करता है। जिससे Zn के पात्र में छेद हो जाते है तथा विधुत धारा बाहर बहने लगती है अतः शुष्क सेल को (मेटल) धातु के पात्र में रखते है।

Note : इस सेल से 1.5v की विधुत प्राप्त होती है इन्हे रेडियो में प्रयुक्त किया जाता है।

 

मर्करी सेल :

इन सेलों का उपयोग घड़ियों तथा कैमरों में किया जाता है जहां विधुत की कम आवश्यकता होती है।  मर्करी सेल में ऐनोड Zn , Hg का बना होता है तथा विधुत अपघट्य के रूप में ZnO व KOH का मिश्रण भरा होता है।  सेल में निम्न क्रिया होती है

एनोड पर क्रिया  Zn + 2OH– → ZnO + H2O  + 2e

कैथोड पर क्रिया  HgO + H2O + 2e → Hg + 2OH

Cell reaction (सेल अभिक्रिया)  Zn + HgO →  ZnO + Hg

Note : इस सेल से 1.35v की विधुत प्राप्त होती है।

सीसा संचायक सेल :

इस सेल में Pb, Sb के बने दो इलेक्ट्रोड होते है इनमें से एक में स्पंजी लैड (Pb ) व दूसरे में PbO2 भरा होता है , इन्हे क्रमशः  ऐनोड व कैथोड के नाम से जाना जाता है।

दोनों इलेक्ट्रोडो को 38%  H2SO4 के विलयन में डुबो देते है इस प्रकार बने एक सेल से 2 वॉल्ट की विधुत प्राप्त होती है। यदि ऐसे 6 सेलों को श्रेणी क्रम में जोड़ दिया जाए तो 12 वोल्ट की विधुत प्राप्त होती है।

सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।

ऐनोड पर सेल अभिक्रिया Pb  + SO42- → PbSO4 + 2e

कैथोड पर सेल अभिक्रिया  PbO2 + 4H+ + SO42- + 2e  → PbSO4 + 2H2O

सेल अभिक्रिया Pb(s) + PbO2(s) + 4H+ + 2SO42-  → 2PbSO4 + 2H2O

उपरोक्त अभिक्रिया से स्पष्ट है की जब सेल से विधुत प्राप्त करते है अर्थात सेल डिस्चार्ज होता है दोनों इलेक्ट्रोडो पर PbSO4 बनता हैं।

जब सेल को बाह्य विधुत स्रोत से जोड़ते है अर्थात सेल को आवेशित किया जाता है तो उपरोक्त अभिक्रिया विपरीत दिशा में होने लगती है।

2PbSO4 + 2H2O → Pb(s) + PbO2(s) + 4H+ + 2SO42-

निकेल कैडमियम सेल : 

ये सेल महंगे होते है।

इसका उपयोग मोबाइल में किया जाता है।

इस सेल में निम्न अभिक्रिया होती हैं।

Cd (s) + 2Ni(OH)3 → CdO + 2Ni(OH)2 + H2O

ईंधन सेल :

इन सेलों में ईंधन की रासायनिक ऊर्जा को सीधे ही विधुत ऊर्जा में बदला जाता है।  ईंधन के रूप में H2 , CH4 , C2H6 , C3H8 आदि काम में लेते हैं।

H2-O2 ईंधन सेल:

इस सेल में कार्बन सरंध्र दो इलेक्ट्रोड होते है जिन पर Pt का लेप लगा होता है।  दोनों इलेक्ट्रोडो के मध्य KOH का तनु विलयन भरा होता है।  इसे आयताकार पात्र में बंद कर देते है।  ऐनोड पर H2 गैस तथा कैथोड पर O2 गैस प्रवाहित करते है।

सेल में निम्न अभिक्रिया होती है।

कैथोड पर H2 → 2H+ + 2e

2H+ + 2OH → -2H2O

H2 + 2OH– → 2H2O + 2e–                समीकरण 1

एनोड पर

O2 + 2H2O + 4e → 4OH              समीकरण 2

समीकरण 1 को 2 से गुणा कर समीकरण 1 व समीकरण 2 को जोड़ने पर।

2H2 + 4OH  → 4H2O + 4e

O2 + 2H2O + 4e → 4OH

= 2H2(g) + O2(g) → 2H2O (l)

 

चालक

वे पदार्थ जिनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन या स्वतंत्र आयन होते है उन्हें चालक कहते है |

चालक दो प्रकार के होते है।

  1. धात्विक चालक:

इनमे स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन होते है अतः इन्हे इलेक्ट्रॉनिक चालक भी कहते है ताप बढ़ाने से इनकी चालकता में कमी होती है।  क्योंकि ताप बढ़ाने से इलेक्ट्रॉन के बहने में बाधा आती है।

उदाहरण : Cu , Ag , Na , Au , Ca , Fe , Cr , Ni आदि धातुएं तथा ग्रेफाइट।

  1. विद्युत अपघटनी चालक :

इनके विलयन में स्वतंत्र आयन होते है।  ताप बढ़ाने से इनकी चालकता बढ़ती है, क्योंकि ताप बढ़ाने पर आयनों में गति अधिक होती हैं।

उदाहरण : NaCl , KCl , HCl , H2SO4, HNO3 , NaOH  आदि |

चालकों का वर्गीकरण:

चालक को इसके आकार के अनुसार अलग अलग 3 श्रेणियों में रखा गया है .

  1. ठोस चालक:- सोना, चांदी,तांबा, एल्मुनियम इत्यादि
    2. तरल चालक:- पारा, सल्फ्यूरिक एसिड, अमोनियम क्लोराइड, कॉपर सल्फेट इत्यादि
    3. गैसीय चालक:- नियोन, हीलियम, ऑर्गन इत्यादि

अच्छे चालक की विशेषताएं:

  • एक अच्छा चालक की कंडक्टिविटी बहुत ही अच्छी होनी चाहिए और रजिस्ट्रीविटी बहुत कम होनी चाहिए.
  • एक अच्छा चालक खींचने योग्य होना चाहिए और वह सीट बनाने योग्य होना चाहिए.
  • अच्छा चालक यांत्रिक तौर पर भी काफी मजबूत होना चाहिए
  • एक अच्छा चालक में नरम होने का गुण भी होना चाहिए जिसे हम आसानी से मोड सके
  • एक अच्छे चालक की कीमत ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

सेल स्थिरांक किसी सेल में दो इलेक्ट्रोडो के बीच की दूरी तथा उनके अनुप्रस्थकाट के क्षेत्रफल के अनुपात को सेल स्थिरांक कहते है।  इसे G* से व्यक्त करते है।

अर्थात

G* = L/A

हम जानते है की

K = G L /A

G* का मान रखने पर

K = G.G*

या

K = G*/R

चालकता व मोलर चालकता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. विधुत अपघट्य की प्रकृति:

वे पदार्थ जिनका आयनन अधिक होता है उन्हें प्रबल विधुत अपघट्य कहते है , इनके विलयनों में आयनों की संख्या अधिक होती है अतः चालकता का मान अधिक होता हैं।

उदाहरण : HCl , HNO3 , H2SO4, NaOH , KOH , KCL , NaCl , NH4Cl , CH3-COONa आदि |

वे पदार्थ जिनका आयनन कम होता है उन्हें दुर्बल विधुत अपघट्य कहते है इनके विलयनों में आयनों की संख्या कम होती है अतः चालकता का मान कम होता हैं।

उदाहरण : CH3-COOH , NH4OH , HCN , H2CO3 , HCOOH आदि

  1. विलायक की श्यानता :

अधिक श्यानता वाले विलायक में आयनों की गति कम होती है अतः चालकता कम होती है।  कम श्यानता वाले विलायकों में विद्युत अपघट्य की चालकता अधिक होती हैं।

  1. ताप :

ताप बढ़ाने से विधुत अपघट्य का आयनन अधिक होता है , आयनों की संख्या अधिक हो जाती है अतः चालकता का मान अधिक होता हैं।

  1. सान्द्रता :

किसी सान्द्र विलयन में जल मिलाकर उसे तनु किया जाता है , तनुता बढ़ाने पर विद्युत अपघट्य का आयनन अधिक होता है , जिससे मोलर चालकता का मान बढ़ जाता है।  जैसे की निम्न सूत्र से स्पष्ट है।

λm  = K x V

नोट : अनंत तनुता पर विधुत अपघट्य का पूर्ण रूप से आयनन हो जाता है तथा विलयन की मोलर चालकता का मान अधिकतम हो जाता है। मोलर चालकता के इस मान को सीमांत मोलर चालकता या अनंत तनुता पर मोलर चालकता हैं।  इसे Rmसे व्यक्त करते हैं।

तनुता बढ़ाने पर चालकता का मान कम होता है क्योंकि चालकता की परिभाषा के अनुसार 1 घन सेमी विलयन के चालकत्व को चालकता कहते हैं।

तनुता बढ़ाने पर 1 घन सेंटीमीटर विलयन में आयनो की संख्या कम हो जाती है अतः चालकता का मान कम हो जाता है।

 

कोलराउस नियम क्या है –

“अन्नत तनुता पर, किसी विद्युत अपघट्य की मोलर चालकता का मान उस विद्युत अपघट्य के धन आयन तथा ऋण आयन की मोलर आयनिक चालकता या अलग अलग मोलर चालकता के योग के बराबर होती है, यही कोलराउस का नियम है।”

अर्थात मोलर चालकता में कुछ योगदान धनायन प्रदान करता है तथा कुछ मोलर चालकता ऋणायन द्वारा प्रदान की जाती है इस प्रकार विद्युत अपघट्य विलयन की कुल मोलर चालकता का मान दोनों के योगदान के योग के बराबर होती है।

उदाहरण :

(1)  NaCl  ⇌ Na+  + Cl–

λm (NaCl) = λNa+  + λCl

(2)  H2SO ⇌ 2H+  + SO42-

λm (H2SO4) = 2λH+  + λSO42-

 

कोलराउश नियम के अनुप्रयोग:

  1. अनंत तनुता पर दुर्बल विधुत अपघट्य की मोलर चालकता का मान ज्ञात करना।

कोलराउस नियम की सहायता से दुर्बल विधुत अपघट्य जैसे CH3-COOH की अनंत तनुता पर मोलर चालकता निम्न प्रकार से ज्ञात करते है।

अनंत तनुता पर CH3-COOH निम्न प्रकार से आयनित होता है।

CH3COOH  ⇌  CH3COO  + H+

कोलराउस नियम से

λm (CH3COOH) = λCH3COO  + λH+                 (समीकरण 1 )

CH3COONa , HCl , NaCl प्रबल विधुत अपघट्यो की अनंत तनुता की मोलर चालकता की सहायता से CH3COOH  की सीमांत मोलर चालकता ज्ञात की जा सकती है।

CH3COONa  ⇌ CH3COO + Na+

λm (CH3COONa) = λCH3COO  + λNa+                (समीकरण 2  )

HCl  ⇌ H+ + Cl

λm (HCl) = λH+  + λCl                                           (समीकरण 3  )

NaCl  ⇌ Na+  + Cl–

λm (NaCl) = λNa+  + λCl                                          (समीकरण 4 )

समीकरण 2 व 3 को जोड़कर  समीकरण 4 घटाने पर

λm (CH3COONa) + λm (HCl) – λm (NaCl)

= λCH3COO  + λH+

अर्थात  हमें λm (CH3COOH) प्राप्त  होता है।

अतः λm (CH3COOH)  =  λm (CH3COONa) + λm (HCl) – λm (NaCl)

 

नेर्नस्ट समीकरण

सेल का विधुत वाहक बल आयनों की सान्द्रता पर निर्भर करता हैं। अतः विधुत वाहक बल व आयनों की सांद्रता के मध्य सम्बन्ध को जिस समीकरण से व्यक्त किया जाता है उसे नेर्नस्ट समीकरण कहते हैं।

एकल इलेक्ट्रोड के लिए या अर्द्ध सैल के लिए नेर्नस्ट समीकरण :

माना एक अर्द्ध सैल में निम्न क्रिया होती हैं।

Mn+  +  ne   =  M(s)

अर्द्ध सैल का विभव निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता हैं।

E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (RT/nF) ln[M]/[Mn+]

चूँकि ठोस के लिए [M] = 1

अतः

E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (RT/nF) in 1/[Mn+]

या

E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – 2.303(RT/nF) log 1/[Mn+]

चूँकि 25.c ताप पर

2.303(RT/nF) = 0.059   ( सभी स्थिरांको के मान रखकर )

R-  गैस नियतांक
T –  परम् ताप
F –  फैराडे नियतांक
n-   प्रयुक्त इलैक्ट्रानों की संख्या

E Mn+/M   = E0 Mn+/M  – (0.059/n) log 1/[Mn+]

उपरोक्त समीकरण को एकल इलेक्ट्रोड की नेर्नस्ट समीकरण कहते हैं।

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